Saturday, June 29, 2013

RTE (Right To Education) and A Story


RTE (Right To Education) and A Story


छठी के छात्र छेदी ने छत्तीस की जगह बत्तीस कहकर जैसे ही बत्तीसी दिखाई, गुरुजी ने छडी उठाई और मारने वाले ही थे की छेदी ने कहा, "खबरदार अगर मुझे मारा तो! मे गिनती नही जानता मगर आरटीई की धाराएँ अच्छी तरह जानता हूँ. 
गणित मे नही, हिंदी मे समझाना आता है."

गुरुजी चौराहों पर खड़ी मूर्तियों की तरह जडवत हो गए. जो कल तक बोल नही पाता था, वो आज आँखें दिखा रहा है!

शोरगुल सुनकर प्रधानाध्यापक भी उधर आ धमके. कई दिनों से उनका कार्यालय से निकलना ही नही हुआ था. वे हमेशा विवादों से दूर रहना पसंद करते थे. इसी कारण से उन्होंने बच्चों को पढ़ाना भी बंद कर दिया था. आते ही उन्होंने छडी को तोड़ कर बाहर फेंका और बोले, "सरकार का आदेश नही पढ़ा? प्रताड़ना का केस दर्ज हो सकता है. रिटायरमेंट नजदीक है, निलंबन की मार पड़ गई तो पेंशन के फजीते पड़ जाएँगे. बच्चे न पढ़े न सही, पर प्रेम से पढ़ाओ. उनसे निवेदन करो. अगर कही शिकायत कर दी तो ?"

बेचारे गुरुजी पसीने पसीने हो गए. मानो हर बूँद से प्रायस्चित टपक रहा हो! इधर छेदी "गुरुजी हाय हाय" के नारे लगाता जा रहा था और बाकी बच्चे भी उसके साथ हो लिए.

प्रधानाध्यापर ने छेदी को एक कोने मे ले जाकर कहा, "मुझसे कहो क्या चाहिए?"
छेदी बोला, "जब तक गुरुजी मुझसे माफी नही माँग लेते है, हम शाला का बहिष्कार करेंगे. बताए की शिकायत पेटी कहाँ है?"

समस्त स्टाफ आश्चर्यचकित और भय का वातावरण हो चुका था. छात्र जान चुके थे की उत्तीर्ण होना उनका कानूनी अधिकार है.

बड़े सर ने छेदी से कहा की मे उनकी तरफ से माफी माँगता हूँ, पर छेदी बोला, "आप क्यों मांगोगे ? जिसने किया वही माफी माँगे. मेरा अपमान हुआ है."

आज गुरुजी के सामने बहुत बड़ा संकट था. जिस छेदी के बाप तक को उन्होंने दंड, दृढ़ता और अनुशासन से पढ़ाया था, आज उनकी ये तीनों शक्तिया परास्त हो चुकी थी. वे इतने भयभीत हो चुके थे की एकांत मे छेदी के पैर तक छूने को तैयार थे, लेकिन सार्वजनिक रूप से गुरूता के ग्राफ को गिराना नही चाहते थे. छडी के संग उनका मनोबल ही नही, परंपरा और प्रणाली भी टूट चुकी थी. सारी व्यवस्था नियम कानून एक्सपायर हो चुके थे. कानून क्या कहता है, अब ये बच्चो से सिखना पढ़ेगा!

पाठक्रम मे अधिकारों का वर्णन था, कर्तव्यों का पता नही था. अंतिम पड़ाव पर गुरु द्रोण स्वयं चक्रव्यूह मे फँस जाएँगे!

वे प्रण कर चुके थे की कल से बच्चे जैसा कहेंगे, वैसा ही वे करेंगे. तभी बड़े सर उनके पास आकर बोले, "मे आपको समझ रहा हूँ. वह मान गया है और अंदर आ रहा है. उससे माफी माँग लो, समय की यही जरूरत है."

छेदी अंदर आकर टेबल पर बैठ गया और हवा के तेज झोंके ने शर्मिन्दा होकर द्वार बंद कर दिए.

कलम को चाहिए कि यही थम जाए. कई बार मौन की भाषा संवादों पर भारी पड़ जाती है. 

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What is WRONG

4 comments:

  1. is kanoon me guru aur shishya dono ko adhikar dena chahiye ek ko nahi

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  2. is kanoon me guru aur shishya dono ko adhikar dena chahiye ek ko nahi

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  3. kanoon ko dono ko hi pahle kartvya phir adhikar dene chahiye kartvya ke poorti na hone par adhikar khatm hone ka pravdhan hona chihiye. iske liye school se niskashan jese adhikar bhi guruji ke paas hone chahiye

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  4. kanoon ko dono ko hi pahle kartvya phir adhikar dene chahiye kartvya ke poorti na hone par adhikar khatm hone ka pravdhan hona chihiye. iske liye school se niskashan jese adhikar bhi guruji ke paas hone chahiye

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